You promise, you run, you fall again,
who will pick you now?
You smile, you pretend. You act so happy, all the time,
who will understand that you are lying?
So many lies, so many of your lies.
Though, I am not really good in hindi poetry, I wanted to write this poem for my father. Thank you for always supporting me.
सब करते है प्यार माँ से,
पर मैं तो हमेशा पापा की ही बेटी थी।
हर अक्स में मेरे, कही ना कही
उनकी ही झलक छिपती थी।
हाथो पर उनके, रख कर मैं सर,
ख्वाबो से मिला करती थी।
दिखती तो मैं भी माँ जैसी ही
पर बेटी तो अपने पापा की थी।
नाचती मैं, धुन थी उनकी।
गाती मैं, सरगम उनकी।
बाते मेरी, पर हँसी उनकी।
कौन हु मैं? बस छवि उनकी।
ना समझी कभी इस फ़िक्र को,
ना समझी कभी ये प्यार।
पर वक़्त बदलता है हर रोज़
दिन नया कुछ सिखाता है हर बार।
टूटा-टूटा सा दिल मेरा,
ना था कोई, देने मेरा साथ।
ना समझी माँ, ना बेहेन समझी,
समझे सिर्फ वो सारी बाते अनकही।
दो अरसो का इंतज़ार,
पर आप एक शब्द ना बोले,
मेरे आंसू को जो देखा,
फट से पिघल गए।
ना माने कोई,
कोई कहे कुछ भी,
पर लाडली तो सिर्फ मैं,
लाडली बेटी अपने पापा की।
सब कहते थे ये ना करेगी कुछ,
बेच देगी तुम्हे, लेलेगी ख़ुशी सब।
पर हाथ मेरा ना छोड़ा उन्होंने।
आज हु जो मैं उनसे ही हु।
ये मुस्कान मेरी है उनसे ही,
और उनकी हँसी है मुझसे।
ना गिरूँगी कभी, ना रुकूँगी कही।
क्योंकि हु तो मैं अपने पापा की बेटी।